Friday, April 24, 2009

चुनाव आयोग का पैंतरा

लोक सभा के दूसरे चरण के मतदान समाप्ति के साथ ही पूत के पाँव पालने में ही नजर आने लगे. मतदान का आँकड़ा 50 प्रतिषत पार नहीं कर सका. इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि लोकसभा देष की आधी से भी कम आबादी का प्रतिनिधि करती है. आधी से ज्यादा आबादी के लिए लोकतंत्र कोई मायने नहीं रखती. महीनों पहले से मतदाताओं को जागरुक करने की मुहिम चल रही थी. वोटरों को बूथ तक जाने के लिए प्रेरित किया जा रहा था. बावजूद इसके मतदाता क्यों अपने-अपने घरों में रहे. सोचना यह है कि मतदाता क्या उदासीन थे या फिर डरे हुए. यह भी देखना होगा कि कितने प्रतिषत मतदाता उदासीन होकर नेताओं के प्रति अपने गुस्से का इजहार कर रहे थे और यह भी देखना होगा कि कितने प्रतिषत लोग हिंसा और भय के चलते मतदान करने नहीं आये. कुछ देर के लिए इसको किनारे छोड़ दिया जाये. और जो लोग मतदान के लिए निकले, उनकी हालत क्या थी? आप सोचिए पिछले 50-60 वर्षों में एक आदमी का पहचान पत्र नहीं बन सका. कौन बनाता है, कैसे बनता है कि उसमें अषुद्धियाँ हो जाती है. बाप का नाम गलत, पति का नाम गलत, फोटो गलत कैसे होता है? क्या बेगार में पचहान पत्र बनवाया जाता है? या पहचान पत्र बनवाने की जिनको जिम्मेवारी दी गयी है, वे इसे फालतू समझते हैं? चुनाव आयोग. वाह रे चुनाव आयोग! वह रे तामझाम! महीनों पहले से चुनाव की तैयारियाँ चलती है, सुरक्षा के पक्के इंतजाम यानि कि पुख्ता इंतजाम किया जाता है फिर कहाँ जाता है सुरक्षा का इंतजाम? बुथ पर एक सिपाही तक नहीं. सही कम वल्कि बोगस वोट ज्यादा कैसे पड़ जाता है? सुरक्षा इंतजाम के बीच बुथ कैप्चर कैसे होता है? बुथ लूट कैसे होता है?. इवीएम में तुम भी टीपो, हम टीपें कैसे होता है. महीनों पहले से हजारों की संख्या में पुलिस बल सीआरपीएफ और न जाने क्या-क्या लगे होते हैं. फिर भी देखिए क्या हाल है. अब तो लोग यहाँ तक कहने लगे हैं कि चुनाव आयोग और नक्सलियों की मिलीभगत है, क्योंकि नक्सली को इतना टाइम चुनाव आयोग देता है कि तुम घुम-घुम कर 10 स्थान पर विस्फोट करो. एक हप्ते 10 दिन के बाद दूसरा चुनाव. साधन विहीन नक्सली को इतना समय मिल जाता है कि दूसरी जगह आराम से पहुँच सके. कुछ नहीं लोक तंत्र के नाम पर एक खेल हो रहा है. इससे सरकारी कर्मचारी से लेकर बैंक कर्मचारी, षिक्षक, पुलिस सब बलि का बकरा होते हैं. चुनाव आयोग के पास कोई नीति नहीं है, बस एक कर्मचारी को और नेताओं को डराने का काम करता है. अब तो चुनाव आयोग एक चुटकुला बन गया है. ’’ एक माँ बच्चे को रात में बोलती है, -सो जा, सो जा नहीं, तो चुनाव आयोग केा बोल दूँगी तूझ पे एक मामला दर्ज कर देगा।
लेखक: विजय रंजन

4 comments:

  1. Aapka aalekh sochne ko majboor karta hai.

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  2. Jha ji,
    pahchaan patr mein zabardast galati ki to bhukt-bhoogi main swayam hun....
    सो जा, सो जा नहीं, तो चुनाव आयोग केा बोल दूँगी तूझ पे एक मामला दर्ज कर देगा...
    Gabbar ke baad ye BABBAR SINGH hai....
    sahi kaha...
    bahut khoob...
    Bhaut khushi hui aap Ranchi mein hain, main bhi Ranchi ki hun aur RANCHI naam padhte hi bas jhoom jaati hun...

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  3. श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
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  4. bohat acha
    www.kuchkhaskhabar.blogspot.com

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